गुरुवार, 13 मार्च 2008

सीमोन द बुआ के देश में बेबी हालदार

सीमोन द बुआ के देश में बेबी हालदार


पहली बार में यह सुनकर यकीन करना बहुत मुश्किल होता है कि दूसरों को घरमें झाड़ू-पोंछा करने वाली लड़की एक लेखिका भी बन सकती है, मगर बेबीहालदार ने इसे हकीकत में बदल दिया. उनकी पहली किताब आलो आंधारि कोजबरदस्त सफलता मिली. बीते साल यह किताब हिंदी में प्रकाशित हुई और अब तकउसके दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं. इसका हिन्दी से गहरा रिश्ता हैक्योंकि प्रेमचंद के नाती प्रबोध कुमार ने न सिर्फ उन्हें अपने घऱ मेंरहने की जगह दी बल्कि उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया और उनकी पहलीकिताब को दुनिया के सामने लाए. उनकी किताब के बांग्ला संस्करण का विमोचनसुपरिचित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने किया था. खास बात यह है कि बेबी हालदारने अपनी दूसरी किताब भी पूरी कर ली है. कवि, पत्रकार और टिप्पणीकार पंकजपाराशर ने पिछले दिनों बेबी हालदार की खोज-खबर ली. प्रस्तुत हैं उनकीटिप्पणियों के कुछ अंश...

फ्लैशबैकहालदार से मिला। बेबी हालदार पांच-छह साल पहले तक गुमनाम जरूर थी मगर आजवह इतनी चर्चित है कि बर्षों से कलम घिस रहे रचनाकारों तक को उससे रश्कहो सकता है. हालांकि आज भी बेबी का ठिकाना वहीं है, प्रो. प्रबोध कुमारके घर-डी.एल.एफ.सिटी गुड़गांव में. प्यार से जिन्हें वह तातुश कहती है.बेबी साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेने हांगकांग, पेरिस से होकर आ चुकीहै और आज वह देश के भी कई शहरों में वायुयान से आती -जाती हैं, जो उनकीसंघर्ष का नतीजा है. न्यूयार्क टाइम्स, बी.बी.सी. , सीएनएन-आइ.बी.एन. आदिपर उनका इंटरव्यू आ चुका है.


लेखिका जैसा दिखना भी जरूरीबेबी हालदार कुछ महीने पहले पहली बार हांगकांग जा रही थी तो दिल्लीएयरपोर्ट पर उसे रोक दिया गया। अधिकारियों ने कहा कि यह महिला लेखिकाकैसे हो सकती है? क्योंकि अधिकारियों की समझ के अनुसार लेखिका होने केसाथ-साथ दिखना भी जरूरी है. सो बेबी उनकी नजरों में वैसा दीख नहीं रहीथी. द अदर साइड आफ साइलेंस की मशहूर लेखिका उर्वशी बुटालिया भी बेबी केसाथ थी. उनके समझाने का भी अधिकारियों पर कोई असर नहीं हुआ. नतीजतन उसदिन बेबी की फ्लाइट मिस हो गई. अगले दिन एक सांस्कृतिक रुप से संपन्नअधिकारी की बदौलत बेबी की रवानगी संभव हो पाई. वहां जाकर दुनिया भर केलेखकों ने बेबी हालदार के संघर्ष से परिचय प्राप्त किया. उसके बाद बेबीपेरिस गईं. वहां तकरीबन एक सप्ताह तक वह रहीं और फ्रेंच भाषी समाज कोअपनी प्रतिभा को लोहा मनवाया.


सिमोन के देश में बेबी हालदार


बेबी हालदार जब पेरिस पहुंची तो काफी लोगों को उनसे मिलने की उत्सुकताथी। लोग जानना चाहते थे कि एक कामवाली औरत कैसे आत्महत्या और हत्या सेबचे जीवन में इतनी ताकतवर हो सकी? फ्रांस के लोग सांस्कृतिक रुप से कितनेसंपन्न है इसका अनुमान सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूरोपीयलेखकों के बीच यह धारणा प्रचलित है कि जिसको पेरिस में मान्यता नहीं मिलीउसको समझो कहीं मान्यता नहीं मिली. शायद यही कारण है कि रायनेर मारियारिल्के, स्टीफन ज्विग, सार्त्र, सिमोन सबने पेरिस को अपना ठिकाना बनाया.ऐसे पाठकों के बीच बेबी हालदार एक सप्ताह तक रही। रोज कहीं भाषण देनाहोता, कहीं पाठकों के सवालों का जवाब देना होता, कहीं आटोग्राफ देना होताऔर अक्सर फ्रेंच महिलाओं के साथ देर तक बैठकर उनके सवालों का जवाब देनापड़ता. यह सब होता एक दुभाषिया के माध्यम से. वहां के लोग बेबी के सवालोंसे चमत्कृत होते. हैरत की बात यह है कि फैशन के नये-नये रुप प्रचलितकरनेवाले शहर पेरिस की फैशन पत्रिकाओं ने अपने आवरण पर बेबी को छापा,इंटरव्यू लिये.

sabhar , पंकज पाराशर के ख्बाब का दर से

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