पुरुष से अलग होनी चाहिए
स्त्री की पहचान
बरसों से स्त्री की पहचान उसके पिता , भाई , पति या प्रेमी के नाम से होती आ रही हैं । लेकिन अब समय आ गया है , कि स्त्री की पहचान एक पुरुष से हटकर हो। उसे अपने नाम और काम से जाना जाए , पहचाना जाए ।
हमारा मानना है कि पुरुषों को स्त्री की उतनी आजादी को खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए, जितनी आजादी वे खुद अपने लिए चाहते हैं।
बीवी कैसी हो... पति कैसा हो...ये दो सवाल... हैं तो बहुत सिम्पल... और इनके जवाब भी लोग बहुत सिम्पल से ही देते हैं। बीवी सुंदर होनी चाहिए, सुशील होनी चाहिए। पति और परिवार का ख्याल रखने वाली होनी चाहिए। कामकाजी यानी नौकरीपेशा भी होनी चाहिए। साथ ही खास बात यह है कि पत्नी नौकरीपेशा होते हुए भी पतिव्रता और पारंपरिक होनी चाहिए।... इस बात पर ज्यादा जोर दिया जाता है। ठीक उसी तरह पति की बात करें तो, पति ऐसा होना चाहिए, जो पत्नी का ख्याल रखें।
मगर हम यहां इन सब बातों के बारे में चर्चा नहीं कर रहे हैं... । बात करते हैं विषय पर, बीवी कैसी हो... इस सिम्पल से सवाल का जवाब कुछ यूं हो सकता है।... जवाब किसका है। पहले आप यह भी जान लीजिए। जवाब भी एक सिम्पल मैन का है। जिसकी एक सिम्पल-सी सोच है। मगर इस सिम्पल सोच में कई बड़ी बातें छिपी हुई है।
बीवी कैसी हो... तो बीवी ऐसी हो, जिसकी अपनी कोई पहचान हो, या फिर पहचान बनाने की ललक हो, कॅरियर बनाने की लगन हो, देश की जिम्मेदार नागरिक बनने की चाहत हो। देश के लिए अपना तुच्छ या बहुमूल्य योगदान देने का जज्बा हो।
हमारे इस जवाब के पक्ष-विपक्ष में कई सवाल उठ सकते हैं। पहला सवाल विपक्ष से। ये पहचान और नाम या होता है... और आप बीवियों से यह उम्मीद यों करते हो कि उनका कुछ नाम- धाम और पहचान-वहचान हो। तो जनाब, यों न उम्मीद करें...। आप क्या समझते हैं नाम-पहचान सिर्फ पुरूषों की बपौती है क्या...।
महिलाओं को शादी के बाद अपना सारा व्यक्तित्व, अपनी सारी काबिलीयत पति- बच्चे और परिवार पर न्यौछावार कर देनी चाहिए। देश कोई चीज नहीं हैं या...। चलिए देश की बात छोड़ भी दें, तो या आदमी का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता ... अपनी कोई पहचान नहीं होती है... जब पुरूषों को अपनी पहचान, अपना अस्तित्व प्यारा होता है... तब महिला यूं न अपना अस्तित्व, अपना वजूद बनाए...।
अपने अस्तित्व को लेकर सजग स्त्री
सवाल और भी उठाए जा सकते हैं। पर जवाब सबका सिर्फ एक ही है...। बदलते वक्त में स्त्री अपने अस्तित्व को लेकर सजग हो गई है। अब तक कहा जाता था कि स्त्री के लिए सबसे खतरनाक होता है उसका स्त्री होना। मगर अब स्त्री अपने ही हथियार से दुश्मनों को परास्त कर रही है।
बात जब स्त्री देह की होती है। तब आज यही कहा जाता है, स्त्री के लिए अब उसकी देह एक हथियार हो गई, एक ढाल बन गई।... क्योंकि अब तक स्त्री देह को ही एक स्त्री के कमजोरी का कारण माना जाता था। इस बात पर विचार करके स्त्री ने अब अपनी इस कमजोरी को ही सबसे बड़ा हथियार बना डाला है। स्त्री बाखूबी जानती है कि इस हथियार का इस्तेमाल कब, कहां और कैसे करना है।स्त्री देह जब से हथियार में तब्दील हुई है। उसकी धार अब पैनी हो चली है। पहले वह बोथरी हुआ करती थी। जिससे स्त्री अगर अपने इस बोथरे हथियार के जरिए किसी से मुकाबला करने के बारे में सोचती थी तो नुकसान उसी का होता था। कहावत भी इस बारे में मशहूर है कि तरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी तरबूजे पर। हलाल तो तरबूजे को ही होना है। मतलब साफ है, स्त्री-पुरूष संबंधों में भुगतना स्त्री को ही पड़ता है।
अब संबंधों का भुगतान वसूलती है स्त्री
लेकिन अब समय बदला है। स्त्री को स्त्री-पुरुष संबंधों के कारण भुगतना नहीं पड़ता, बल्कि स्त्री उसका भुगतान वसूलती है। कई स्त्री-पुरुष इसके खिलाफ बोलते मिल जाएंगे। उन्हें बोलने दीजिए। हमें भी उन्हें सुनना चाहिए। यहीं कहेंगे न आप कि अपनी देह को, हर किसी सौंप देना कहां तक उचित है।... बरसों से सुनते आ रहे है।... धर्मग्रंथों में लिखा है, देह की पवित्रता बहुत मायने रखती है। स्त्री को अपनी देह ऐसे ही थोड़ी न सबके सामने परोस देना चाहिए।
पुरुष देह की पवित्रता का ख्याल नहीं आता
हम पूछते है आपसे।... बताइए तो जरा। भला या बुराई है इस बात में।... देह उसकी है। तो इस्तेमाल करने का हक भी उसी को होना चाहिए। (पुरुषों से) आपको स्त्री देह की पवित्रता की चिंता खूब सताती है। आपको अपनी यानी पुरुष देह की पवित्रता का ख्याल नहीं आता। वैसे हमारा मानना है कि देह की पवित्रता और अपवित्रता जैसी कोई बात नहीं होती। कुछ है तो, वो है व्यक्ति की सोच, व्यक्ति का नजरिया। पूछते है आपसे।... बताइए तो जरा। भला या बुराई है इस बात में।... देह उसकी है। तो इस्तेमाल करने का हक भी उसी को होना चाहिए। (पुरुषों से) आपको स्त्री देह की पवित्रता की चिंता खूब सताती है। आपको अपनी यानी पुरुष देह की पवित्रता का ख्याल नहीं आता। वैसे हमारा मानना है कि देह की पवित्रता और अपवित्रता जैसी कोई बात नहीं होती। कुछ है तो, वो है व्यक्ति की सोच, व्यक्ति का नजरिया।
बदल रही है लोगों की सोच
विवाह संस्था पर आज सौ सवाल उठ रहे हैं। विवाह संस्था के सामने अस्तित्व को बचाए रखने का संकट है। यों। कारण, आज हर व्यवस्था बदलाव चाहती है। वक्त के हिसाब से कुछ परिवर्तन, कुछ लचीलापन मांगती है। मगर कुछ पुरूष अब भी वहां अपनी हुकूमत बरकरार रखना चाहते हैं। अपने आप को परमेश्वर कहलाना पसंद करते हैं। और जब पत्नी इस बात को इंकार करती है तो समझो बस उसकी शामत आ गई। आखिर कौन रहना चाहेगा ऐसे माहौल में। बस फिर क्या है तनाव, झगड़ा और बिखराव-तलाक।पर इधर लोगों की सोच में बदलाव आया है। अभी एक फिल्मी कलाकर का बयान आया था कि उन्हें अच्छा लगेगा, खुशी होगी। अगर उनकी पत्नी को पहले से सेक्स का अनुभव हो। यह तो सिर्फ एक पक्ष है कि पुरूष अब स्त्री की सेक्स आजादी को दबे, छिपे ही सही मगर स्वीकार करने लगे हैं। मगर बात सिर्फ सेक्स की नहीं है।
अपनी सोच को ग्लोबल बनाइए
अब हम फिर से टॉपिक पर लौटते हैं। तथाकथित पुरुष अपनी पत्नियों के खुलेपन से डरते हैं। उन्हें स्त्री के, अपनी स्त्री के अपवित्र हो जाने की चिंता सताती है। हम कहते हैं कि आपकी यह चिंता उस वक्त कहां जाती है, जब यह गुनाह, आप खुद करते हैं। स्त्री को अपवित्र करने का।... जरा सोचिए जनाब।... अपनी सोच का ग्लोबल बनाइए। अगर आप खुलापन चाहते हैं, तो दूसरों को भी खुलापन दीजिए
तृष्णा
also readhttp://dongretrishna.blogspot.com/
http://rachanakar.blogspot.com/2007/12/blog-post_24.html
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें