- अभिभावकों की तरफ से यह जायज समस्या अब सामने आ रही है, उनकी पढ़ी लिखी और काबिल बेटियों के हिसाब से रिश्ते नहीं मिल रहे हैं। - काजी, शरई अदालत दारुल कजा
- मुसलिम समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है। प्रोफेशनल पढ़ाई कर चुकी काबिल लड़कियों के रिश्ते के लिए समाजसेवी संगठनों को आगे आना चाहिए। - मुसलिम लड़की,
- शरई अदालत दारुल कजा के सामने आ रहे दूल्हों की कमी के मामले
- प्रोफेशनल कोर्स करने में लड़कियां आगे, लड़के फिसड्डी
- पढ़ाई में मुसलिम लड़कों और लड़कियों में अनुपातिक अंतर
प्रोफेशनल पढ़ाई में मुसलिम लड़कियों के बढ़ते कदम ने उनके अभिभावकों के सामने एक नई समस्या खड़ी कर दी है। ज्यादा पढ़ जाने से समाज में उनके लायक लड़कों की कमी हो गई है। व्यवसायिक शिक्षा में लड़कियों के लड़कों से आगे होने का खुलासा मूवमेंट फॉर मुसलिम इंपावरमेंट के सर्वे से हो चुका है। अब ऐसी लड़कियों के लिए लायक दूल्हों की कमी के मामले गाहे-बगाहे मुसलिम बुद्धिजीवियों और शरई अदालत दारुल कजा के सामने आ रहे हैं।
सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी लड़कियां और 40 फीसदी लड़के व्यवसायिक शिक्षा ले रहे हैं। लेकिन मुसलिम समाज में प्रोफेशनल और नौकरीपेशा लड़कों की कमी से उनके सामने बेटियों की शादियों का संकट खड़ा हो गया है। सर्वे 600 प्रोफेशनल छात्र-छात्राओं पर कराया गया था। इसमें से करीब 370 लड़कियां और 230 लड़के विभिन्न क्षेत्रों में व्यवसायिक शिक्षा ले रहे हैं।
मूवमेंट फॉर मुसलिम इंपावरमेंट के महासचिव डा। इशरत सिद्दीकी ने बताया कि अभिभावक अपनी बेटियों के लिए प्रोफेशनल और नौकरीपेशा लड़कों की तलाश कर रहे हैं, जिनमें अनुपातिक अंतर है। इनमें ज्यादातर लड़कियां मध्यम वर्गीय परिवार की हैं। जिनके अभिभावक तृतीय श्रेणी सरकारी कर्मचारी या बिजनेस से जुड़े हैं। मुसलिम लड़कियों ने एमबीबीएस, बीटेक, बीफार्मा, फिजियोथिरेपी, फैशन डिजाइनिंग, बीएड, एमबीए और एमसीए, एलएलबी को कैरियर के रूप में चुना है।
शरई अदालत दारुल कजा के काजी मौलाना इनाम उल्ला ने बताया कि अभिभावकों की तरफ से यह जायज समस्या अब सामने आ रही है, उनकी पढ़ी लिखी और काबिल बेटियों के हिसाब से रिश्ते नहीं मिल रहे हैं। लड़के रोजगार से जुड़े हैं, लेकिन किसी का गैरेज है तो किसी की आटोमोबाइल की दुकान। अकसर मां-बाप सलाह मशविरा के लिए दारुल कजा आते हैं।
महंगी प्रोफेशनल पढ़ाई में अभिभावकों को काफी दिक्कतें आईं। इनमें से कुछ को निगेटिव एरिया के तौर पर चिन्ही़त होने पर लोन नहीं मिला। महंगी कोचिंग होने के कारण घरों में लड़कियों ने प्रवेश परीक्षा की तैयारी की।
- नौबस्ता की शीरी बीटेक, फराह खानम बीटेक, नवाबगंज की बेनिस फैजाबाद से बीटेक कर रही हैं। कुछ लोगों को मेरिट कम मींस वजीफा योजना के तहत फायदा हुआ।
- बेकनगंज की मदनी बहनों ने भी चुनौतियों का सामना कर वकालत में अपनी जड़ें जमाई हैं। नाज मदनी, मुमताज अनवरी और फिरोज अनवरी वकालत कर रही हैं। नाज मदनी ने बताया कि मुसलिम समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है। प्रोफेशनल पढ़ाई कर चुकी काबिल लड़कियों के रिश्ते के लिए समाजसेवी संगठनों को आगे आना चाहिए।
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अलीगढ़ में मुसलिम लड़कियों की शिक्षा का प्रतिशत दस साल में तेजी से बढ़ा है। अगले छह साल यानी 2015 और उसके बाद मुसलिम लड़कियों का प्रतिशत लड़कों से अधिक हो जाने की संभावना है।
अमुवि में वर्ष 1999 में मुसलिम लड़कियों का प्रतिशत विभिन्न संकायों में 18 से 22 था, जो कि 2009 में बढ़कर 37 से 40 फीसदी तक पहुंच गया है। जिले में मुसलिम लड़कियों के लिए शिक्षा की बुनियाद अमुवि के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने रखी थी। जिसे शेख अब्दुल्ला ने लड़कियों के लिए अब्दुल्ला कालेज की स्थापना कराकर आगे बढ़ाया।
हालांकि अमुवि के पीआरओ राहत अबरार ने बताया कि उनके मित्र चर्चा करते हैं कि लड़कियां पढ़ी लिखी होने पर उनकी शादी के लिए लड़के देखने में चुनौती का सामना करना पड़ता है।
धर्मशास्त्र विभाग के शिक्षक डा. मु ती जाहिद ए खान ने बताया कि समाज में पढ़ी-लिखी लड़कियों के लिए लड़के देखने में परेशानी सामने आ रही है।
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