हम आधा आकाश मंगातें हैं ।
अपने लिए
जगह एक खास मंगातें हैं ।
अंधेरों को चीर के रख दें,
ऐसा एक प्रकाश मंगातें हैं ।
पुरुषों तुमसे हम
अपने लिए विश्वास मंगातें हैं ।
हमें भी दो मौका कुछ कर गुजरने का ।
हमें स्थान तुमसे आगे नहीं चाहिए
स्थान हम अपना पास -पास मंगातें हैं ।
अपने लिए नहीं
इस दुनिया के विकास के लिए
आधा आकाश मंगातें हैं ।
आधा आकाश मंगातें हैं ।
अपने लिए जगह एक खास मंगातें हैं ।
(ये कविता साल 2003 की 13 फरवरी को chhindwara, mp में लिखी गई थी । मैं उस वक्त कॉलेज में था । जब मैंने इसे स्टेज से सुनाया तो ... girls की ओर से आवाज आई ... हमें पूरा आकाश चाहिए । मतलब साफ है... आधी आबादी को अपना आकाश चाहिए .... वे सिर्फ़ पाना चाहती है ... खोने के लिए उनके पास कुछ नहीं ... सो उनके लिए आधा आकाश ... )
तृष्णा तंसरी / 13 feb 2003
अपने लिए
जगह एक खास मंगातें हैं ।
अंधेरों को चीर के रख दें,
ऐसा एक प्रकाश मंगातें हैं ।
पुरुषों तुमसे हम
अपने लिए विश्वास मंगातें हैं ।
हमें भी दो मौका कुछ कर गुजरने का ।
हमें स्थान तुमसे आगे नहीं चाहिए
स्थान हम अपना पास -पास मंगातें हैं ।
अपने लिए नहीं
इस दुनिया के विकास के लिए
आधा आकाश मंगातें हैं ।
आधा आकाश मंगातें हैं ।
अपने लिए जगह एक खास मंगातें हैं ।
(ये कविता साल 2003 की 13 फरवरी को chhindwara, mp में लिखी गई थी । मैं उस वक्त कॉलेज में था । जब मैंने इसे स्टेज से सुनाया तो ... girls की ओर से आवाज आई ... हमें पूरा आकाश चाहिए । मतलब साफ है... आधी आबादी को अपना आकाश चाहिए .... वे सिर्फ़ पाना चाहती है ... खोने के लिए उनके पास कुछ नहीं ... सो उनके लिए आधा आकाश ... )
तृष्णा तंसरी / 13 feb 2003
सर आपकी कविता काबिले तारीफ है इस तरह की कविता के लिये कोई भी फ़िदा हो सकता है हम आपकी लेखनी के कायल है
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