शुक्रवार, 7 मार्च 2008

ब्लॉग कविता : आधा आकाश

हम आधा आकाश मंगातें हैं ।
अपने लिए
जगह एक खास मंगातें हैं ।



अंधेरों को चीर के रख दें,
ऐसा एक प्रकाश मंगातें हैं ।
पुरुषों तुमसे हम
अपने लिए विश्वास मंगातें हैं ।

हमें भी दो मौका
कुछ कर गुजरने का ।

हमें स्थान तुमसे आगे नहीं चाहिए
स्थान हम अपना
पास -पास मंगातें हैं ।


अपने लिए नहीं
इस दुनिया के विकास के लिए


आधा आकाश मंगातें हैं ।
आधा आकाश मंगातें हैं ।


अपने लिए जगह एक खास मंगातें हैं ।



(ये कविता साल दो हजार तीन की तेरह फरवरी को chhindwara, mp में लिखी गई थी । मैं उस वक्त कॉलेज में था । जब मैंने इसे स्टेज से सुनाया तो ... girls की ओर से आवाज आई ... हमें पूरा आकाश चाहिए । मतलब साफ है... आधी आबादी को अपना आकाश चाहिए .... वे सिर्फ़ पाना चाहती है ... खोने के लिए उनके पास कुछ नहीं ... सो उनके लिए आधा आकाश ... )



तृष्णा तंसरी / 13 feb 2003

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