शनिवार, 24 अगस्त 2013

मर्द का दर्द, ढूंढ़ रहा हमदर्द

बचाओ बचाओ
  1. देश में हर नौवें मिनट में एक विवाहित पुरुष आत्महत्या करता है।
  2.  नेशनल क्राइम रिकार्ड 2012 के अनुसार देश में 65311 विवाहित पुरुषों ने किसी न किसी कारण से आत्महत्या की जबकि महिलाओं की संख्या 32 हजार रही।

कानपुर। ‘मर्द को कभी दर्द नहीं होता।’ मर्दानगी की ये शेखी बघारना अब सबके बस की बात नहीं रही। बेचारे मर्द भी शोषित-उत्पीड़ित हैं। कुछ का दर्द सामने आ जाता है और कुछ के किस्से घर की दीवारों के भीतर ही कैद रहते हैं। खैर, महिला उत्पीड़न-महिला हिंसा के हल्ले के बीच अब पुरुषों ने भी अपने दर्द का मरहम मांगा है। महिला आयोग की तर्ज पर पुरुष आयोग बनाने और महिलाओं के प्रति बने कानूनों के बढ़ते दुरुपयोग को रोकने की मांग तेज हो रही है। गुरुवार को नानाराव पार्क में ‘दामन वेलफेयर सोसाइटी’ की ओर से पुरुषों के हक में आवाज उठाने के लिए दोपहर दो बजे से सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।

संस्था के उपाध्यक्ष रोशन जायसवाल ने प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में बताया कि सम्मेलन में पुरुषों के हक के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर केरल से कश्मीर तक की यात्रा पर निक ला चार सदस्यीय दल भी शामिल होगा। उन्होंने बताया कि सरकार ने महिलाओं-बच्चों के कल्याण के लिए आयोग गठित किए हैं।
इनके समर्थन में कई कानून और योजनाएं भी बनी हैं लेकिन पुरुषों के संदर्भ में आजतक कोई आयोग गठित नहीं किया गया है, जबकि देश में पुरुषों पर लगातार अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। जरा-जरा सी बात पर मुकदमा दर्ज करा दिया जाता है और पुलिस बिना सोचे-समझे उन्हें जेल में ठूंस देती है। समाज का नजरिया भी पुरुषों को ही दोषी ठहराने वाला रहा है। पुरुषों का दर्द कोई नहीं समझता। उन्होंने कहा कि इस अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की जा रही है। जल्द ही आंदोलन को विस्तार दिया जाएगा। वार्ता के दौरान मनोज गुप्ता, सुबोध कटियार, डा. इन्दु सुभाष, मनोज कुमार आदि मौजूद रहे।
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मुझे मेरी बीवी से बचाओ
गोविंदनगर में रहने वाले सोनू गुप्ता आजकल परेशान से रहते हैं। घर और दफ्तर में वो अक्सर टेंशन में नजर आते हैं। उनकेदोस्तों ने जब उनसे इसकी वजह पूछी तो पता चला कि वे आजकल अपनी पत्नी से परेशान हैं। वे कहते हैं कि पत्नी उनसे माता-पिता को छोड़कर अकेले में रहने का दबाव बना रही है। जब उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया तो पत्नी और उनके परिजन उन्हें दहेज उत्पीड़न में फंसाने की धमकी दे रहे हैं। वहीं, गुजैनी के राजेश पालीवाल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उनकी पत्नी ने उनके खिलाफ दहेज उत्पीड़न का फर्जी मामला दर्ज करा दिया है।

पत्नी की क्रूरता पर तलाक
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले में पति को तलाक का हकदार बताते हुए अपने फैसले में कहा है कि पति और पत्नी में किसी का व्यवहार यदि एक-दूसरे के प्रति  इतरा क्रूर हो जाए कि साथ रहना मुश्किल हो तो पति को तलाक का हक है। इस मामले में पीसीएस अधिकारी पति ने पत्नी पर क्रूरतापूर्ण व्यवहार का मुकदमा कराया था। बीते वर्ष दिल्ली में कोर्ट ने एक महिला की झूठी शिकायत पर पति और उनकेपरिवारीजनों को बरी करते हुए तलाक का फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहा था कि यहां मामला मानसिक क्रूरता है, इस कारण तलाक का फैसला सुनाया जाता है।
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पुरुषों के हक के लिए नानाराव पार्क में सम्मेलन आज
‘दामन वेलफेयर सोसाइटी’ ने उठाई आवाज
  1. संस्था के शहर में 100 से अधिक सदस्य हैं, इनमें से अधिकांश पर दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा के केस दर्ज
संस्था की मांगें
  1. - देश के 87 फीसदी पुरुष टैक्स देते हैं। इसके बावजूद उनके लिए महिला आयोग, बाल आयोग की तर्ज पर कोई पुरुष आयोग गठित नहीं है।
  2. - विवाहित पुरुष अपनी समस्यायें कहां दर्ज करवाएं। उनके लिए कोई भी कल्याणकारी योजना व कानून नहीं है। जबकि बच्चों, महिलाओं से लेकर पशुओं तक के लिए कल्याणकारी योजनाएं सरकारें चला रही है।
  3. - रिकार्ड के मुताबिक दहेज उत्पीड़न के 70 फीसदी मामले झूठे साबित होते हैं जबकि पत्नी या उसके परिवारीजन सबसे पहले दहेज उत्पीड़न का मामला पति और उसके रिश्तेदार पर दर्ज करवाते हैं। इस कानून में संशोधन करने की आवश्यकता है।
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मेरा दर्द न जाने कोय
दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या के सभी आरोप सही नहीं होते। ये बात अदालतें भी कह चुकी हैं। पुलिस और कानून के जानकार भी मानते हैं। उनका कहना है कि कई मामलों में दहेज उत्पीड़न एक तरह से पति के उत्पीड़न करने का हथियार बन गया है। महिलाओं के लिए विशेषकर बने इस कानून से पति और उसके घर वालों को महीनों और सालों तक जेल की यातना सहनी पड़ती है। पुरुषों के हक में आवाज उठाने वाले संगठन सबसे ज्यादा विरोध इसी कानून का कर रहे हैं।

संस्था के पदाधिकारियों का कहना है कि कई बार घर में पति-पत्नी के बीच होने वाले झगड़े का एक प्रमुख मुद्दा पति के माता-पिता को साथ न रखने का होता है। पति उन्हें साथ रखना चाहता है लेकिन पत्नी इसके लिए तैयार नहीं होती। बात बढ़ती है तो अक्सर ऐसे मामलों में भी दहेज उत्पीड़न का सहारा लिया जाता है।
आप कुछ कहना चाहते हैं डायल करें : +91-9536901343
ई मेल: crimescene 360@knp.amarujala.com
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मर्द इन हेल्पलाइन पर ऑनलाइन अपना दुखड़ा कह सकते हैं
• http://ghaziabad.olx.in/498a-406-domestic-violence-act-divorce-helpline-men-cell-iid-147467481
• http://All india/Bangalore
HelpLine 09880141531 – 09731569970 For Local ...
• http://498amisuse.wordpress.com/all-indiabangalore-
helpline- 09880141531- 09731569970-for-local-helpline
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साभार- अमर उजाला/22 अगस्त, 2013

गुरुवार, 7 मार्च 2013

एक लड़की को चाहिए "सुशील पत्‍नी"

 सदियों से एक महिला को किसी की बेटी, बहन या बीवी के रूप में ही पहचाना जाता रहा है। क्या इस इतिहास को बदला नहीं जा सकता। क्या त्याग और बलिदान की भावना अब पुरुषों को भी अपने अंदर पैदा नहीं करनी चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष पेशकश - 
एक लड़की अगर अपने लिए एक "सुशील पत्‍नी"  यानी पत्नी के गुणों वाले पति की चाहत करती है, तो इसमें गलत क्या है। जमाना बदल गया है। जमाना बदल रहा है। अब इतना मु‌श्किल भी नहीं रहा लड़कियों के लिए "सुशील पत्‍नी" का मिलना। वह भी ऐसे समय में जबकि आज ढेरों लड़के अपने लिए "सुशील पति" यानी पति के गुणों वाली पत्‍नी ढूंढ रहे हैं। "सुशील पति" यानी वह लड़की या महिला, जिसमें पति वाले सारे गुण हो, जो नौकरी भी कर सके, बाहर के सारे काम भी देख सके। साथ ही किसी काम के लिए पति या अन्य पुरुष मित्र, रिश्तेदार पर निर्भर न हो।

वहीं, "सुशील पत्‍नी" यानी वह लड़का या पुरुष, जिसमें पत्‍नी वाले सारे कई गुण हो। जो खाना बना सके, बच्चों की देख-भाल कर सके, घर की सारी जिम्मेदारी संभाल सके। ताकि अपनी नौकरीपेशा, व्यवसायी या रचनात्मक कार्यों से जुड़ी अपनी पत्‍नी को अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने में पूरा सहयोग मिल सके। कुछ गलत है ऐसा सोचना। हमारी स्त्री शक्ति ने, महिलाओं ने यही तो किया है सदियों से। अपने पतियों (तथाकथित पति परमेश्वर) को महान बनाने के लिए अपने सर्वस्व का बलिदान किया है। करती जा रही है। पति को घर-गृहस्‍थी की झंझट से दूर रखकर, बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी से बचाकर, हर काम महिला ने अपने कांधे पर डाल रखा है ताकि उसका पति अपनी नौकरी, व्यवसाय पर पूरा ध्यान दें। अपने क्षेत्र लेखन, चित्रकारी, समाज सेवा, फिल्म जगत में आगे बढ़ें, नाम कमाए और महान बनें।

क्या किसी महापुरुष के साथ उसकी पत्‍नी का नाम कभी गर्व से लिया जाता है। याद रखा जाता है। कारण, उस महिला ने अपने पति के लिए अपनी पहचान खो दी। वर्ना जमाना उसे भी याद करता। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, महान वैज्ञानिक आइंस्‍टीन, देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, उपन्यासकार प्रेमचंद जैसे कई उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है।

मशहूर उपन्यास "वॉर एंड पीस" के महान लेखक टालस्टाय को कौन नहीं जानता। लेकिन क्या उनकी पत्‍नी सोफिया को दुनिया जानती हैं, जिन्होंने इस उपन्यास को 17 बार अपने हाथों से कागज पर लिखा था। लंदन ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रचने वाले भारतीय पहलवान सुशील कुमार को आज हरेक भारतीय जानता है। लेकिन इनकी कामयाबी के पीछे भी एक महिला का त्याग और बलिदान छुपा है। ये महिला हैं सुशील कुमार की पत्‍नी सावी सोलंकी। बताया जाता है कि इनकी शादी को करीब एक साल हुआ था लेकिन इन्होंने सिर्फ दो महीने ही साथ गुजारे थे। सुशील कुश्ती की प्रैक्टिस में काफी व्यस्त रहते थे और घर-परिवार की सारी जिम्मेदारी उनकी पत्नी सावी ने उठा रखी थी। साफ है कि लगातार दो ओलंपिक में व्यक्तिगत तौर पर मेडल जीतने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले सुशील कुमार की इस उपलब्धि के पीछे उनकी पत्‍नी का भी हाथ रहा है।

एक लड़की अगर अपने लिए "सुशील पत्‍नी" की चाहत दिखाती है। तो आप उसे ज्ञान देना शुरू कर देते हैं। आपको "सुशील पत्‍नी" यानी पत्‍नी के गुणों वाला पति नहीं मिल सकता। या "सुशील पत्‍नी" की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। तुम खुद सुशील पत्‍नी बनो। तुम्हारा तो धर्म है, नारी धर्म (पुरुषों का बनाया हुआ, वैसे भी हर धर्मग्रंथ पुरुषों ने ही रचे है।) पुरुषों को कामयाब बनाने के लिए अपना बलिदान करना। ताभि तो इस पंक्ति को चरितार्थ करोगी- हर सफल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है। ऐसे पुरुषों को अपना ज्ञान अपने पास ही रखना चाहिए।

अब ये किसी से छिपा नहीं है कि स्‍त्री या पुरुष भगवान, ईश्वर ने नहीं बनाए है। या कम से कम स्‍त्री तो नहीं ही। भगवान ने तो केवल स्‍त्री-पुरुष के बीच लिंग का भेद बनाया था। दोनों को वहीं दिमाग और हिम्मत दी थी। लेकिन हमारे समाज ने (पुरुष सत्ता ने)....। पुरुषों को महान बनाने के लिए महिला को लाचार स्‍त्री और गुलाम बना दिया। न तो घर से बाहर निकलने दिया, न ही बाहर के काम करने दिए। ताकि वह अपने आप को लाचार ही समझती रही। हमेशा दूसरों (पुरुषों) पर निर्भर रहे। आज भी जिन लड़कियों को घर तक सीमित रखा जाता है। उनको अकेले घर से बाहर निकलने, दूसरे शहर जाने में या बाहर के काम करने में परेशानी होती है।
 
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जिन लड़कियों, महिलाओं में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो, जज्बा हो, उन्हें अपने पतियों से भरपूर सहयोग मिले। सदियों से एक महिला को किसी की बेटी, बहन या बीवी के रूप में ही पहचाना जाता रहा है। क्या इस इतिहास को बदला नहीं जा सकता। क्या त्याग और बलिदान की भावना अब पुरुषों को भी अपने अंदर पैदा नहीं करनी चाहिए। अगर हम पुरुषों की पहचान किसी महिला के पिता, भाई या पति के रूप में होने लगी तो क्या यह हमारे लिए गर्व की बात नहीं होगी।

 - रामकृष्‍ण डोंगरे तृष्‍णा

मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

एक बेटे के लिए उन्नीस बेटियां

एक बेटे के लिए उन्नीस बेटियां

- जिला महोबा, विकासखंड पनवाड़ी, ग्राम स्योड़ी
- पिता चतुर्भुज अहिरवार (उम्र 45),
- वर्ष 1985 में लाड़कुंवर के साथ हुआ विवाह
- शादी के दो साल बाद पहली बच्ची प्रभा का जन्म
- इसके बाद सोनिया, रेखा, अनुसुइया, बबली, अर्चना, मन्नू सहित 19 बेटियों को जन्म दिया।
- आठ बेटियों को हो चुकी है मौत
- बेहद गरीब परिवार में जन्में चतुर्भुज ने बच्चियों के भरण- पोषण के लिए गांव छोड़ दिल्ली में डाला डेरा
- रविवार को बेटा पाकर दंपति अपने सारे गम भूल गया!
- बीसवें बच्चे की खबर मिलते ही गांव में बांटी गई मिठाइयां

एक तरफ जहां हम आप बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं मानते। वहीं यूपी के एक गांव में माता-पिता ने वंश चलाने के नाम पर एक बेटे के लिए उन्नीस बेटियों को जन्म दे दिया। क्या कहेंगे आप इसे। मेरे आसपास ही बहस झड़ने पर कोई कहता है कि अच्छा तो है, बेटियां पैदा की। क्या आपको बेटी से प्यार नहीं। है क्यों नहीं। खूब प्यार है मुझे। मगर क्या उस पिता ने बेटी पसंद होने के चलते एक के बाद एक बेटियों को पैदा किया। क्या सोचते हैं आप। यहीं ना कि बेटे के लिए मजबूरी में बेटियों को संसार में लाए।

.... कोई कहता है कि पॉजिटिव सेंस में देखिए ... बेटे के लिए कितना धीरज रखा, एक-दो, तीन-चार नहीं उन्नीस बेटियों तक इंतजार किया। ऐसा धीरज किस काम का। घर में खाने को दाना नहीं। बच्चों की परवरिश के लिए पिता घर छोड़ परदेस में आए। उसपर भी क्या सभी बेटियों को अच्छा जीवन दे पाएगा यह पिता!!!
अब आप ही सोचिए ... कहां जा रहा है हमारा समाज।
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उन्नीस बेटियों को जन्म देने के बाद लाड़कुंवर की बेटे की चाहत पूरी हो गई। रविवार को उसने पनवाड़ी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बच्चे को जन्म दिया तो पूरा गांव खुशी से झूम उठा। परिवार के लोगों ने बच्चे का नाम कृष्ण कुमार रखा है। इस मौके पर महिला ने जननी सुरक्षा योजना के तहत 1400 रुपए की चेक भी प्राप्त की। लाड़कुंवर की उम्र इस समय 45 साल है।
उत्तर प्रदेश के महोबा के विकासखंड पनवाड़ी के ग्राम स्योड़ी निवासी चतुर्भुज अहिरवार का विवाह वर्ष 1985 में लाड़कुंवर के साथ हुआ था। शादी के दो साल बाद लाड़कुंवर ने प्रभा के रूप में पहली बच्ची को जन्म दिया। इसके बाद सोनिया, रेखा, अनुसुइया, बबली, अर्चना, मन्नू सहित 19 बेटियों को जन्म दिया। आठ बेटियां भगवान को प्यारी हो चुकी थीं। बेहद गरीब परिवार में जन्में चतुर्भुज को अपनी बाकी बच्चियों के भरण- पोषण के लिए गांव छोड़कर दिल्ली में डेरा डालना पड़ा। वह दिल्ली में मजदूरी करके हर माह बच्चियों की परवरिश के लिए पैसा भेजता रहा है। इस बीच इन लोगों ने किसी तरह बड़ी बेटी के हाथ भी पीले कर दिए, पर लाड़कुंवर की बेटे की चाहत कम नहीं हुई। रविवार को बेटा पाकर यह दंपति अपने सारे गम भूल गया। उनका कहना है कि अब यह बच्चा वंश को आगे बढ़ाएगा। बीसवें बच्चे की खबर मिलते ही स्योड़ी गांव में मिठाइयां बंटने लगीं।

शुक्रवार, 26 जून 2009

मुसलिम लड़कियों के सामने शादी की समस्या

नहीं मिल रहे काबिल दूल्हे
  • मूवमेंट फॉर मुसलिम इंपावरमेंट के सर्वे से खुलासा

- अभिभावकों की तरफ से यह जायज समस्या अब सामने आ रही है, उनकी पढ़ी लिखी और काबिल बेटियों के हिसाब से रिश्ते नहीं मिल रहे हैं। - काजी, शरई अदालत दारुल कजा


- मुसलिम समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है। प्रोफेशनल पढ़ाई कर चुकी काबिल लड़कियों के रिश्ते के लिए समाजसेवी संगठनों को आगे आना चाहिए। - मुसलिम लड़की,

  • शरई अदालत दारुल कजा के सामने रहे दूल्हों की कमी के मामले

  • प्रोफेशनल कोर्स करने में लड़कियां आगे, लड़के फिसड्डी

  • पढ़ाई में मुसलिम लड़कों और लड़कियों में अनुपातिक अंतर
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प्रोफेशनल पढ़ाई में मुसलिम लड़कियों के बढ़ते कदम ने उनके अभिभावकों के सामने एक नई समस्या खड़ी कर दी है। ज्यादा पढ़ जाने से समाज में उनके लायक लड़कों की कमी हो गई है। व्यवसायिक शिक्षा में लड़कियों के लड़कों से आगे होने का खुलासा मूवमेंट फॉर मुसलिम इंपावरमेंट के सर्वे से हो चुका है। अब ऐसी लड़कियों के लिए लायक दूल्हों की कमी के मामले गाहे-बगाहे मुसलिम बुद्धिजीवियों और शरई अदालत दारुल कजा के सामने आ रहे हैं।

सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी लड़कियां और 40 फीसदी लड़के व्यवसायिक शिक्षा ले रहे हैं। लेकिन मुसलिम समाज में प्रोफेशनल और नौकरीपेशा लड़कों की कमी से उनके सामने बेटियों की शादियों का संकट खड़ा हो गया है। सर्वे 600 प्रोफेशनल छात्र-छात्राओं पर कराया गया था। इसमें से करीब 370 लड़कियां और 230 लड़के विभिन्न क्षेत्रों में व्यवसायिक शिक्षा ले रहे हैं।

मूवमेंट फॉर मुसलिम इंपावरमेंट के महासचिव डा। इशरत सिद्दीकी ने बताया कि अभिभावक अपनी बेटियों के लिए प्रोफेशनल और नौकरीपेशा लड़कों की तलाश कर रहे हैं, जिनमें अनुपातिक अंतर है। इनमें ज्यादातर लड़कियां मध्यम वर्गीय परिवार की हैं। जिनके अभिभावक तृतीय श्रेणी सरकारी कर्मचारी या बिजनेस से जुड़े हैं। मुसलिम लड़कियों ने एमबीबीएस, बीटेक, बीफार्मा, फिजियोथिरेपी, फैशन डिजाइनिंग, बीएड, एमबीए और एमसीए, एलएलबी को कैरियर के रूप में चुना है।

शरई अदालत दारुल कजा के काजी मौलाना इनाम उल्ला ने बताया कि अभिभावकों की तरफ से यह जायज समस्या अब सामने आ रही है, उनकी पढ़ी लिखी और काबिल बेटियों के हिसाब से रिश्ते नहीं मिल रहे हैं। लड़के रोजगार से जुड़े हैं, लेकिन किसी का गैरेज है तो किसी की आटोमोबाइल की दुकान। अकसर मां-बाप सलाह मशविरा के लिए दारुल कजा आते हैं।

महंगी प्रोफेशनल पढ़ाई में अभिभावकों को काफी दिक्कतें आईं। इनमें से कुछ को निगेटिव एरिया के तौर पर चिन्ही़त होने पर लोन नहीं मिला। महंगी कोचिंग होने के कारण घरों में लड़कियों ने प्रवेश परीक्षा की तैयारी की।
  • नौबस्ता की शीरी बीटेक, फराह खानम बीटेक, नवाबगंज की बेनिस फैजाबाद से बीटेक कर रही हैं। कुछ लोगों को मेरिट कम मींस वजीफा योजना के तहत फायदा हुआ।
    - बेकनगंज की मदनी बहनों ने भी चुनौतियों का सामना कर वकालत में अपनी जड़ें जमाई हैं। नाज मदनी, मुमताज अनवरी और फिरोज अनवरी वकालत कर रही हैं। नाज मदनी ने बताया कि मुसलिम समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है। प्रोफेशनल पढ़ाई कर चुकी काबिल लड़कियों के रिश्ते के लिए समाजसेवी संगठनों को आगे आना चाहिए।
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मुस्लिम लड़कियों में साक्षरता दर बढ़ी

अलीगढ़ में मुसलिम लड़कियों की शिक्षा का प्रतिशत दस साल में तेजी से बढ़ा है। अगले छह साल यानी 2015 और उसके बाद मुसलिम लड़कियों का प्रतिशत लड़कों से अधिक हो जाने की संभावना है।
अमुवि में वर्ष 1999 में मुसलिम लड़कियों का प्रतिशत विभिन्न संकायों में 18 से 22 था, जो कि 2009 में बढ़कर 37 से 40 फीसदी तक पहुंच गया है। जिले में मुसलिम लड़कियों के लिए शिक्षा की बुनियाद अमुवि के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने रखी थी। जिसे शेख अब्दुल्ला ने लड़कियों के लिए अब्दुल्ला कालेज की स्थापना कराकर आगे बढ़ाया।

मुसलिम लड़कियों में शिक्षा के लिए संघर्ष अमुवि के रजिस्ट्रार रहे सज्जाद हैदर की पत्नी नाजरे हैदर ने किया। वह खुद पढ़ीं और आसपास की लड़कियों को पढ़ाने के लिए समाज की चुनौतियों को स्वीकार कर संघर्ष करती रहीं। यहां तक कि उन्होंने अपनी बेटी कुर्तल एन हैदर को बढ़ाया नहीं बल्कि प्र यात उर्दू की लेखक बनाया।

हालांकि अमुवि के पीआरओ राहत अबरार ने बताया कि उनके मित्र चर्चा करते हैं कि लड़कियां पढ़ी लिखी होने पर उनकी शादी के लिए लड़के देखने में चुनौती का सामना करना पड़ता है।

धर्मशास्त्र विभाग के शिक्षक डा. मु ती जाहिद ए खान ने बताया कि समाज में पढ़ी-लिखी लड़कियों के लिए लड़के देखने में परेशानी सामने आ रही है।

गुरुवार, 7 मई 2009

गाजियाबाद की शुभ्रा आईएएस टापर


शुभ्रा आईएएस टापर
सिविल सेवा परीक्षा 2008 में गाजियाबाद की रहने वाली शुभ्रा सक्सेना ने सबको पछाड़ कर शीर्ष स्थान हासिल किया है। आकर्षक वेतन वाली साफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ सिविल सेवा चुनने वाली शुभ्रा का इरादा गांवों में रहने वाली जनता के लिए कुछ करने का है। झारखंड के बोकारो में कोयला खदान श्रमिकों में फैली गरीबी को देख कर ही उन्होंने आईएएस बनने का निश्चय किया था।


इस बार सिविल सेवा परीक्षा की सफलता सूची में लड़कियों का बोलबाला रहा। पहले तीन स्थानों पर लड़कियों ने बाजी मारी। दूसरे स्थान पर शरणनदीप कौर बरार और तीसरे स्थान पर किरण कौशल रहीं। चौथे स्थान पर वरिंदर कुमार रहे।

गाजियाबाद में शिप्रा सनसिटी की विंडसर एंड नोवा [फ्लैट-82] निवासी शशांक गुप्ता की पत्नी शुभ्रा सक्सेना मूलरूप से बरेली की रहने वाली हैं। शुभ्रा के पिता अशोक चंद्र सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड [सीसीएल] बोकारो में अधिशासी अभियंता हैं। शुभ्रा ने डीएवी पब्लिक स्कूल ढोरी, बोकारो से दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। केसीएम स्कूल, मुरादाबाद से इंटरमीडिएट करने के बाद आईआईटी रुड़की से बीटेक किया।


दूसरे प्रयास में शुभ्रा ने सिविल सेवा परीक्षा का शिखर छू लिया। शुभ्रा की शादी छह साल पूर्व शिप्रा सनसिटी के विंडसर एंड नोवा में रहने वाले शशांक गुप्ता से हुई, जो वर्तमान में नोएडा स्थित सीएससी कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं। शुभ्रा अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता, पति व दोस्तों को देती हैं, लेकिन इस बीच वह शिक्षक [गाइड] मुकुल पाठक की सराहना करने से भी पीछे नहीं रहतीं।

शुभ्रा की सफलता पर उनके ननिहाल मुरादाबाद में भी खुशी की लहर है। शुभ्रा के नाना आर.एन. वर्मा के घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा।

इस साल सिविल सेवा परीक्षा में कुल 791 उम्मीदवार सफल हुए। इनमें जनरल के 364, ओबीसी के 236 और एससी वर्ग के 61 छात्र शामिल हैं। टाप 25 में दस लड़कियां हैं। इस बार कुल 3,18,843 उम्मीदवारों ने फार्म भरा जिनमें 1,67,035 प्रारंभिक परीक्षा में बैठे। इनमें 11,849 ने प्रारंभिक परीक्षा पास की और मुख्य परीक्षा में शामिल हुए। आखिर में 2,140 को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया।

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

महिला दिवस पर स्पेशल स्टोरी : दिलेर दूल्हन मंजू

- और अब मंजू
- दिलेर दूल्हन मंजू को सलाम
- मंजू का मंजूर नहीं लालची दूल्हा

महिला दिवस पर स्पेशल स्टोरी-------------------

उसे मंजूर नहीं लालची दूल्हा... उसने लौटा दी दूल्हे की बारात... फिर भी मुश्किल में हैं वो। जी हां एक और दिलेर दूल्हन इन दिनों चर्चा में है। उसका नाम है मंजू। लखनऊ की मंजू।
यदि दहेज लोभी से शादी कराई तो जान दे दूंगी- दिलेर दूल्हन मंजू
मैं पहले अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं, इसके लिए आगे पढ़ाई करूंगी या मुझे अभी कोई अच्छी नौकरी मिली तो वो करूंगी। मैं कहीं अच्छी सी नौकरी करना चाहती हूं यदि कोई मेरी मदद करना चाहता है तो मेरी नौकरी लगवा दे। मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती हूं। - मंजू

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न्यूज पेपर में खबर छपने के बाद दूल्हे और उसके परिजनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई। मंजू सब कुछ भूलकर आगे की पढ़ाई का मन बना रही थी कि अचानक उसके सामने नई मुसीबत पैदा हो गयी। अब दूल्हे के परिजन के साथ उसके मां-बाप भी उसी लड़के से शादी के लिए दबाव डाल रहे हैं। 4 मार्च को राज्य महिला आयोग पहुँची मंजू का कहना है यदि दहेज लोभी से शादी कराई तो जान दे दूंगी।
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  • लालची दूल्हे की बारात को बैरंग लौटने वाली ग्रेजुएट मंजू की दिलेरी को सबने सलाम किया
  • मंजू के दर पर नेपालगंज के डाक्टर से लेकर ओमान के इंजीनियर तक के रिश्ते आने लगे
  • मंजू पहले अपने पैरों पर खड़ी होगी फिर बसाएगी अपना घर
  • एसएमएस व ई-मेल से आए रिश्तों के पैगाम देख वो रो पड़ी
  • न्याय के लिए खटखटाया महिला आयोग का दरवाजा- कहा, लालची दूल्हे से शादी की तो जान दे दूंगी
  • माता-पिता भी डाल रहे हैं उसी लड़के से शादी का दबाव
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चलिए सबसे पहले पूरे वाकये पर एक सरसरी निगाह डाल लेते हैं। लखनऊ की मंजू की शादी 26 फरवरी को तय हुई थी। जयमाला केसमय दूल्हे ने उसके पिता से एक लाख रुपए और मोटरसाइकिल की मांग कर दी। दूल्हे की जिद के चलते दिलेर मंजू ने शादी न करने का फैसला कर लिया। आखिरकार बारात बैरंग लौट गई। दूल्हे और उसके परिजनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई। अब मंजू के माता-पिता उसी लड़के से शादी करने के लिए जबरदस्ती कर रहे हैं। मंजू ने महिला आयोग से गुहार लगाई है। उसने कहा है कि जबरदस्ती की गई तो वह खुदकुशी कर लेंगी। इस बीच मंजू के दर पर नेपालगंज के डाक्टर से लेकर ओमान के इंजीनियर तक के रिश्ते पहुंचने लगे हैं। जाति-धर्म की दीवार तोड़कर युवक इस बहादुर लड़की को अपनी जीवन साथी बनाने के इच्छुक हैं।
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अब पूरी कहानी तफसील से
-लखनऊ के तालकटोरा थाना के अंबेडकरनगर भरतपुरी बी के रहने वाले जगदीश प्रसाद की 22 वर्षीय पुत्री मंजू ने राज्य महिला आयोग को दिए प्रार्थनापत्र में बताया 26 फरवरी को उसकी मोहल्ले के विजय कुमार से शादी तय हुई थी। जयमाला के समय विजय ने उसके पिता से एक लाख रुपए तथा मोटरसाइकिल मांग ली। घरवालों के लाख समझाने पर भी वह जिद पर अड़ा रहा। इसलिए मैंने उससे विवाह करने से मना कर दिया।
अगले दिन अखबार में इसकी खबर छपने के बाद विजय को कानूनी फंदे से बचाने के लिए उसके घरवाले शादी के लिए जोर डालने लगे। मंजू ने यह भी बताया कि उसके माता-पिता भी उसी लड़के से शादी के लिए जबरदस्ती कर रहे हैं। खत के अंत में महिला आयोग की अध्यक्ष से गुहार लगाते हुए मंजू ने कहा यदि मुझसे जबरदस्ती की गई तो आत्महत्या कर लूंगी।
मंजू को मदद देने के लिए लविवि की पूर्व कुलपति प्रो. रूपरेखा वर्मा आगे आईं, वहीं महिला थानाध्यक्ष ने कहा बालिग लड़की की शादी बिना उसकी मर्जी के नहीं होने दी जाएगी। मां-बाप से यह बात लिखित में लेने के बाद मंजू को घर रवाना कर दिया गया।
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मंजू के लिए रिश्तों की बौछार-
मंडप पर दहेज लोभी दूल्हे से रिश्ता तोड़ने वाली दिलेर मंजू के दर पर नेपालगंज के डाक्टर से लेकर ओमान के इंजीनियर तक के रिश्ते आने लगे हैं। जाति-धर्म की दीवार तोड़कर युवक इस बहादुर लड़की को अपनी जीवन साथी बनाने के इच्छुक हैं। लखनऊ के अलावा नेपालगंज, बलिया, आगरा, चंडीगढ़ ही नहीं ओमान से आए संदेशों में मंजू से शादी की इच्छा जाहिर करने वालों की संख्या कई दर्जन थी। ओमान में इंजीनियर और बलिया निवासी आरएस मिश्र्रा मंजू से शादी करना चाहते हैं। चंडीगढ़ के ओंकार मिश्र ने मंजू के साहस की सराहना करते हुए सलाह दी ऐसे आदमी से शादी करो जिसे इंसानियत की भूख हो।
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मंजू से मिलने को मुरीदों की कतार-
मंजू के मुरीदों की कतार लंबी होती जा रही है। चर्चा है कि कई लोगों ने मंजू को मदद करने की इच्छा भी जाहिर की। कोई पढ़ाई का खर्चा उठाना चाहता है तो कोई मंजू के शादी में टेंट और लाइट का मुफ्त व्यवस्था करने को बेताब है।

अपनी शादी के लिए आए शादी के प्रस्तावों का देखकर उसके आंखों में आंसू आ गया। इन रिश्तों के बारे में उसका कहना है कि वो पहले लड़के से मिल कर साफ साफ बात करेगी कि कोई दहेज या किसी अन्य लालच में तो शादी नहीं कर रहा है तब वर चुनेगी।

वही मंजू का कहना है कि मैं पहले अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं, इसके लिए आगे पढ़ाई करूंगी या मुझे अभी कोई अच्छी नौकरी मिली तो वो करूंगी। उसका कहना है कि मैं कहीं अच्छी सी नौकरी करना चाहती हूं यदि कोई मेरी मदद करना चाहता है तो मेरी नौकरी लगवा दे। मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती हूं।

शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

ओबामा की एक पाती बेटियों के नाम

मेरी सबसे बड़ी खुशी तुम दोनों हो - अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति

एक पिता के रूप में ओबामा ने 10 साल की मालिया व सात साल की साशा को यह समझाने की कोशिश की है कि आखिर उन्होंने यह राह क्यों चुनी और वह उनसे क्या अपेक्षा रखते हैं।

ये सब मैं तुम दोनों के लिए चाहता था। मैं चाहता था कि तुम दोनों ऐसे माहौल में बढ़ो
जहां कोई उपलब्धि तुम्हारी पहुंच के बाहर न हो। सोचने की कोई सीमा न हो। जहां तुम
दोनों एक प्रतिबद्ध महिलाओं के रूप में बड़ी हो सको, जो एक सुंदर दुनिया के निर्माण
में योगदान दे। मैं चाहता हूं जो मौके तुम्हें मिले हैं वह देश के हर बच्चे को
मिले।


  • मेरे लिए कोई उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण नहीं रह गई।

  • मेरी सबसे बड़ी खुशी तुम दोनों हो।

  • मैं तुम्हें खुश नहीं रख सकता तो मेरी जिंदगी के कोई मायने नहीं है।

  • मैं हर बच्चे को स्कूल जाते देखना चाहता हूं।

  • मैं चाहता हूं कि उन्हें अच्छी नौकरी मिले और वे सफल इनसान बनें।

Friday 16 Jan, 2009 08:17 AM

ह्वाइट हाउस में आने से ठीक पहले अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी दोनों बेटियों को एक खत लिखा है। एक पिता के रूप में ओबामा ने 10 साल की मालिया व सात साल की साशा को यह समझाने की कोशिश की है कि आखिर उन्होंने यह राह क्यों चुनी और वह उनसे क्या अपेक्षा रखते हैं। बेटियों के नाम उनका पत्र परेड मैगजीन में छपा है। ओबामा ने लिखा है, ये सब मैं तुम दोनों के लिए चाहता था। मैं चाहता था कि तुम दोनों ऐसे माहौल में बढ़ो जहां कोई उपलब्धि तुम्हारी पहुंच के बाहर न हो। सोचने की कोई सीमा न हो। जहां तुम दोनों एक प्रतिबद्ध महिलाओं के रूप में बड़ी हो सको, जो एक सुंदर दुनिया के निर्माण में योगदान दे। मैं चाहता हूं जो मौके तुम्हें मिले हैं वह देश के हर बच्चे को मिले।

चुनाव प्रचार के चलते उन्हें अपनी बेटियों से दो साल तक दूर रहना पड़ा था। उन्होंने खेद जताते हुए लिखा है, मुझे तुम पर नाज है। मुझे पता है पिछले दो वर्षो में तुमने मुझे कितना याद किया होगा। संयम बनाए रखने के लिए मैं तुम्हारा आभारी हूं। आज मैं तुम्हें बताता हूं कि मैंने क्यों अपने परिवार के लिए यह रास्ता चुना। किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह मैं भी सफल होना चाहता था। लेकिन पिता बनने के बाद सब कुछ बदल गया।

अचानक मुझे लगा कि मेरे लिए कोई उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण नहीं रह गई। मैंने पाया कि मेरी सबसे बड़ी खुशी तुम दोनों हो। मुझे एहसास हुआ कि यदि मैं तुम्हें खुश नहीं रख सकता तो मेरी जिंदगी के कोई मायने नहीं है। मेरी बच्चियों, इसीलिए मैं राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हुआ। ओबामा ने लिखा है, मैं हर बच्चे को स्कूल जाते देखना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि उन्हें अच्छी नौकरी मिले और वे सफल इनसान बनें।

साभार / स्‍त्रोत -