- देश में हर नौवें मिनट में एक विवाहित पुरुष आत्महत्या करता है।
- नेशनल क्राइम रिकार्ड 2012 के अनुसार देश में 65311 विवाहित पुरुषों ने किसी न किसी कारण से आत्महत्या की जबकि महिलाओं की संख्या 32 हजार रही।
कानपुर। ‘मर्द को कभी दर्द नहीं होता।’ मर्दानगी की ये शेखी बघारना अब सबके बस की बात नहीं रही। बेचारे मर्द भी शोषित-उत्पीड़ित हैं। कुछ का दर्द सामने आ जाता है और कुछ के किस्से घर की दीवारों के भीतर ही कैद रहते हैं। खैर, महिला उत्पीड़न-महिला हिंसा के हल्ले के बीच अब पुरुषों ने भी अपने दर्द का मरहम मांगा है। महिला आयोग की तर्ज पर पुरुष आयोग बनाने और महिलाओं के प्रति बने कानूनों के बढ़ते दुरुपयोग को रोकने की मांग तेज हो रही है। गुरुवार को नानाराव पार्क में ‘दामन वेलफेयर सोसाइटी’ की ओर से पुरुषों के हक में आवाज उठाने के लिए दोपहर दो बजे से सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
संस्था के उपाध्यक्ष रोशन जायसवाल ने प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में बताया कि सम्मेलन में पुरुषों के हक के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर केरल से कश्मीर तक की यात्रा पर निक ला चार सदस्यीय दल भी शामिल होगा। उन्होंने बताया कि सरकार ने महिलाओं-बच्चों के कल्याण के लिए आयोग गठित किए हैं।
इनके समर्थन में कई कानून और योजनाएं भी बनी हैं लेकिन पुरुषों के संदर्भ में आजतक कोई आयोग गठित नहीं किया गया है, जबकि देश में पुरुषों पर लगातार अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। जरा-जरा सी बात पर मुकदमा दर्ज करा दिया जाता है और पुलिस बिना सोचे-समझे उन्हें जेल में ठूंस देती है। समाज का नजरिया भी पुरुषों को ही दोषी ठहराने वाला रहा है। पुरुषों का दर्द कोई नहीं समझता। उन्होंने कहा कि इस अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की जा रही है। जल्द ही आंदोलन को विस्तार दिया जाएगा। वार्ता के दौरान मनोज गुप्ता, सुबोध कटियार, डा. इन्दु सुभाष, मनोज कुमार आदि मौजूद रहे।
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- संस्था के शहर में 100 से अधिक सदस्य हैं, इनमें से अधिकांश पर दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा के केस दर्ज
- - देश के 87 फीसदी पुरुष टैक्स देते हैं। इसके बावजूद उनके लिए महिला आयोग, बाल आयोग की तर्ज पर कोई पुरुष आयोग गठित नहीं है।
- - विवाहित पुरुष अपनी समस्यायें कहां दर्ज करवाएं। उनके लिए कोई भी कल्याणकारी योजना व कानून नहीं है। जबकि बच्चों, महिलाओं से लेकर पशुओं तक के लिए कल्याणकारी योजनाएं सरकारें चला रही है।
- - रिकार्ड के मुताबिक दहेज उत्पीड़न के 70 फीसदी मामले झूठे साबित होते हैं जबकि पत्नी या उसके परिवारीजन सबसे पहले दहेज उत्पीड़न का मामला पति और उसके रिश्तेदार पर दर्ज करवाते हैं। इस कानून में संशोधन करने की आवश्यकता है।
संस्था के पदाधिकारियों का कहना है कि कई बार घर में पति-पत्नी के बीच होने वाले झगड़े का एक प्रमुख मुद्दा पति के माता-पिता को साथ न रखने का होता है। पति उन्हें साथ रखना चाहता है लेकिन पत्नी इसके लिए तैयार नहीं होती। बात बढ़ती है तो अक्सर ऐसे मामलों में भी दहेज उत्पीड़न का सहारा लिया जाता है।
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ई मेल: crimescene 360@knp.amarujala.com
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