मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

एक बेटे के लिए उन्नीस बेटियां

एक बेटे के लिए उन्नीस बेटियां

- जिला महोबा, विकासखंड पनवाड़ी, ग्राम स्योड़ी
- पिता चतुर्भुज अहिरवार (उम्र 45),
- वर्ष 1985 में लाड़कुंवर के साथ हुआ विवाह
- शादी के दो साल बाद पहली बच्ची प्रभा का जन्म
- इसके बाद सोनिया, रेखा, अनुसुइया, बबली, अर्चना, मन्नू सहित 19 बेटियों को जन्म दिया।
- आठ बेटियों को हो चुकी है मौत
- बेहद गरीब परिवार में जन्में चतुर्भुज ने बच्चियों के भरण- पोषण के लिए गांव छोड़ दिल्ली में डाला डेरा
- रविवार को बेटा पाकर दंपति अपने सारे गम भूल गया!
- बीसवें बच्चे की खबर मिलते ही गांव में बांटी गई मिठाइयां

एक तरफ जहां हम आप बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं मानते। वहीं यूपी के एक गांव में माता-पिता ने वंश चलाने के नाम पर एक बेटे के लिए उन्नीस बेटियों को जन्म दे दिया। क्या कहेंगे आप इसे। मेरे आसपास ही बहस झड़ने पर कोई कहता है कि अच्छा तो है, बेटियां पैदा की। क्या आपको बेटी से प्यार नहीं। है क्यों नहीं। खूब प्यार है मुझे। मगर क्या उस पिता ने बेटी पसंद होने के चलते एक के बाद एक बेटियों को पैदा किया। क्या सोचते हैं आप। यहीं ना कि बेटे के लिए मजबूरी में बेटियों को संसार में लाए।

.... कोई कहता है कि पॉजिटिव सेंस में देखिए ... बेटे के लिए कितना धीरज रखा, एक-दो, तीन-चार नहीं उन्नीस बेटियों तक इंतजार किया। ऐसा धीरज किस काम का। घर में खाने को दाना नहीं। बच्चों की परवरिश के लिए पिता घर छोड़ परदेस में आए। उसपर भी क्या सभी बेटियों को अच्छा जीवन दे पाएगा यह पिता!!!
अब आप ही सोचिए ... कहां जा रहा है हमारा समाज।
--------------
उन्नीस बेटियों को जन्म देने के बाद लाड़कुंवर की बेटे की चाहत पूरी हो गई। रविवार को उसने पनवाड़ी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बच्चे को जन्म दिया तो पूरा गांव खुशी से झूम उठा। परिवार के लोगों ने बच्चे का नाम कृष्ण कुमार रखा है। इस मौके पर महिला ने जननी सुरक्षा योजना के तहत 1400 रुपए की चेक भी प्राप्त की। लाड़कुंवर की उम्र इस समय 45 साल है।
उत्तर प्रदेश के महोबा के विकासखंड पनवाड़ी के ग्राम स्योड़ी निवासी चतुर्भुज अहिरवार का विवाह वर्ष 1985 में लाड़कुंवर के साथ हुआ था। शादी के दो साल बाद लाड़कुंवर ने प्रभा के रूप में पहली बच्ची को जन्म दिया। इसके बाद सोनिया, रेखा, अनुसुइया, बबली, अर्चना, मन्नू सहित 19 बेटियों को जन्म दिया। आठ बेटियां भगवान को प्यारी हो चुकी थीं। बेहद गरीब परिवार में जन्में चतुर्भुज को अपनी बाकी बच्चियों के भरण- पोषण के लिए गांव छोड़कर दिल्ली में डेरा डालना पड़ा। वह दिल्ली में मजदूरी करके हर माह बच्चियों की परवरिश के लिए पैसा भेजता रहा है। इस बीच इन लोगों ने किसी तरह बड़ी बेटी के हाथ भी पीले कर दिए, पर लाड़कुंवर की बेटे की चाहत कम नहीं हुई। रविवार को बेटा पाकर यह दंपति अपने सारे गम भूल गया। उनका कहना है कि अब यह बच्चा वंश को आगे बढ़ाएगा। बीसवें बच्चे की खबर मिलते ही स्योड़ी गांव में मिठाइयां बंटने लगीं।

2 टिप्‍पणियां: